सोमवार, 21 मार्च 2011

preetii

ख़ूबसूरत आत्मा है खूबसूरत शरीर
प्रियतमा के मिलन को मन रखना धीर
कान्हा बासुरी बजे यमुना के तीर
तुम्ही मेरी राधा हो तुम्ही मेरी हीर

भर आये आँखों में यादो के नीर
विरह की है टीस ऐसी नित उठती पीर
ये दूरिया कम कर दो मेरे जगदीश
प्रियतमा में बसती है मेरी तकदीर

प्यार ही पूजा है प्रियतम मंदिर
मरुथल के जल जैसा ममता का नीर
चारो और घिर आया ईर्ष्या तिमिर
प्रीती का दीप ऐसा उसको दे चीर

भक्तो के ह्रदय में रहते रघुवीर
प्रियतमा के चितवन में प्रिय की तस्वीर
है प्रश्न खड़े जीवन में कितने गंभीर है
कृष्ण खड़े मधुवन में गोपियों से घिर

मंगलवार, 15 मार्च 2011

himaalayi vaade iraado ke liye

बसे घर को सदा से सजाते रहे है
नंदन उपवन में बगिया लगाते रहे है
अंधरे में दीपक जला नहीं पाए
उजाले में सूरज उगाते रहे है

निर्झर का पतन गुगुनाते रहे है
मरुथल को तरसना सिखाते रहे है
उगते अंकुर को जल पिला नहीं पाए
गहरे सिंधु में सरिता बहाते रहे है

नयन में समंदर बसाए हुए है
अगन को ह्रदय में समाये हुए है
हिमालयी वादे इरादों के लिए
श्रम सीकर की सरिता बहाए हुए

सोमवार, 14 मार्च 2011

sham

कंचन सी कौंधी है सुनहरी शाम
रश्मी के होठो पर रत्नों के नाम
सरोवर के दर्पण में झांके गगन
सुगन्धित फूलो से महके पवन
चिडियों के कलरव में सरगमी गान
भंवरो की गुंजन ने छेड़ी है तान
मौजो से तीरों पर नौकाये आई
ह्रदय की हल चल ने बनायीं रुबाई
गायो के बछड़ो ने तृप्ति बुझाई
हो गए जीवंत डगर गली ग्राम
लहरों से उठती है शीतल समीर
, झील मिलाई मुस्काई सरिता गंभीर
प्रियतमा संध्या है प्रेमी गुमनाम
शर्मा कर चुप जाती निशा को थाम

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज