सोमवार, 14 मार्च 2011

sham

कंचन सी कौंधी है सुनहरी शाम
रश्मी के होठो पर रत्नों के नाम
सरोवर के दर्पण में झांके गगन
सुगन्धित फूलो से महके पवन
चिडियों के कलरव में सरगमी गान
भंवरो की गुंजन ने छेड़ी है तान
मौजो से तीरों पर नौकाये आई
ह्रदय की हल चल ने बनायीं रुबाई
गायो के बछड़ो ने तृप्ति बुझाई
हो गए जीवंत डगर गली ग्राम
लहरों से उठती है शीतल समीर
, झील मिलाई मुस्काई सरिता गंभीर
प्रियतमा संध्या है प्रेमी गुमनाम
शर्मा कर चुप जाती निशा को थाम

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज