कंचन सी कौंधी है सुनहरी शाम
रश्मी के होठो पर रत्नों के नाम
सरोवर के दर्पण में झांके गगन
सुगन्धित फूलो से महके पवन
चिडियों के कलरव में सरगमी गान
भंवरो की गुंजन ने छेड़ी है तान
मौजो से तीरों पर नौकाये आई
ह्रदय की हल चल ने बनायीं रुबाई
गायो के बछड़ो ने तृप्ति बुझाई
हो गए जीवंत डगर गली ग्राम
लहरों से उठती है शीतल समीर
, झील मिलाई मुस्काई सरिता गंभीर
प्रियतमा संध्या है प्रेमी गुमनाम
शर्मा कर चुप जाती निशा को थाम
सोमवार, 14 मार्च 2011
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न बिकती हर चीज
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