सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

होगा कर्मो का अभिनन्दन ,खिलते है सरोवर में सरोज

देने वाला खूब देता है , कर लेना तू !मौज
क्यों ?ढूँढता है उसको बाहर ,तुझ में उसकी ओज


अंधियारे में भरपूर सोया उजियारे में भगता रोज़
मिट जाए मन का अंधियारा हट जाएगा दिल से बोझ
कण कण के भीतर वह रहता तू !उसकी है फौज
तीरथ मूरत में न मिलेगा ,क्यों करता है उसकी खौज ?

कर दे अर्पण सारा जीवन ,ज्यादा तू !न सोच
बन जाएगा जब तू !उसका ,ढोयेगा वह तेरा बोझ
पूरा होगा ख़्वाब सुनहरा ,कौशिशे करना तू !रोज
होगा कर्मो का अभिनन्दन ,खिलते है सरोवर में सरोज

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

नन्हे- नन्हे दीप

सज- धज कर आई है गौरी,घर आँगन को लीप
टिम-टिम करते अंधकार मे ,नन्हे- नन्हे दीप

चमक उठा घर का हर कौना,रिश्तो मे आई है प्रीत
आंसू पोछो रोना छोडो,खुशियो का बिखरा संगीत
तेरा -मेरा पर जग ठहरा , आ -जाओ समीप

अपनी -अपनी आशाये है ,सपनो का अपना गणित
आसमान मे बिखरे तारे ,सीखलाते आपस की प्रीत
मन मन्दिर मे जग-मग होते ,आस्थाओ के दीप

गहन अमावस की रतिया मे, महका हर निमीष
बरस रहा है आसमानसे ,देवों का आशीष
गहरे सिन्धु मे उगते है मोती ,मूंगा ,सीप

प्राणो मे होता स्पंदन , झरता है नवनीत
लक्ष्मी माता का हो वन्दन खर्चे हो सीमीत
परम्पराओं से पाये है, नूतन पथ के दीप

मरुथल मे जैसे हो नीर

सज-धज कर आई  है गौरी, घर-आँगन को  लीप
टिम- टिम करते अंधकार मे, नन्हे -नन्हे  दीप !!1!!

दर-दर दिखती है रंगौली , दीपो का उत्सव
ज्योतिर्मय फैला उजियारा, गुजरा तम नीरव !!2!!

निराशा को तज ले प्यारे,गा खुशियो के गीत
गहन अमावश की निशा से,लक्ष्मी जी को प्रीत !!3!!

कोटि तारे आसमान मे का प्रकाश होता निर्जीव
अंधियारे कि कैसी सत्ता ,रहते है उसमे भी जीव!!4!!

घर-आँगन मे दीप जले तो ,ज्योतिर्मय त्यौहार
मन के भीतर अहं गले तो ,सुधरे व्यक्ति का व्यवहार !!5!!

तम मे दीपक का उजियारा,मरुथल मे जैसे हो नीर
टिम-टिम करता अंधियारे मे ,जुगनू की जाने कोई पीर !!6!!

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

अर्चना की भावना को ,जन जन में उतारना है

अर्चना की कामना है ,अर्चना ही साधना है
अर्चना दीप्ती ह्रदय की ईश्वरीय मनोकामना है

प्यार का सागर गहरा ,चाहतो पर सख्त पहरा
अर्चना के रूप में ही ,प्यार की संभावना है
भावनाओं की सरिता, प्रेमिका प्यारी कविता
अर्चना वनवासी सीता, श्रीराम को पहचाना है

अर्चना शक्ति स्वरूपा ,शिव की आराधना है
अर्चना आत्मा की ज्योति, भक्त की उपासना है
अर्चना भावो का अर्पण, प्राणों का होती समर्पण
अर्चना भावानुभूति , निज इष्ट की स्थापना है

अर्चना दुखियो की सेवा ,कष्ट उनके काटना है
वनवासियों की वेदना से ,भावना को बांधना है
अर्चना सेवा समर्पण ,प्यार मिलकर बांटना है
अर्चना की भावना को ,जन जन में उतारना है

बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

तेरी यादो की बस्ती में हम अपनी हस्ती डुबोये है

तुम्ही बसती हो ख्वाबो में ,
भरपूर नीद न सोये है
तुम्हे क्या मालूम ?
तुम्हारी याद में हम दिन रात रोये है
तुम्ही से है मेरी खुशिया
तुम्ही मेरे हो मन बसिया
तुम्हे पहली नजर देखा
हम तभी से तुम में खोये है

तुम्हारे रूप की चाहत में
हम सपने संजोये है
तेरी बिंदिया मेरी निंदिया
मेरी निंदिया तेरी बिंदिया
तुम्हारे गम से हम आँखों को
अश्को से भींगोये है
तेरे तन मन की खुशबू तो
बसी है मेरी सांसो में
तेरी यादो की बस्ती में
हम अपनी हस्ती डुबोये है

समुन्दर बन गया शबनम
दीप खुशियों के बुझोये है
मधुर यादो के मोती को ,
चितवन में पिरोये है
वे मीठे मीत के रिश्ते
जो भाते है ,नहीं पाते
उन्हें पाने की ख्वाहिश में
मिलन के बीज बोये है

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

गहन खामोशीयो मे ,चिन्तन के दीप जले है



(1)
माना कि हम ,गलतियो के पुतले है
सीधी चढाई  से ,जीते किसने किले है
(2)
बाते जो करते है ,दर्शो ,ईमान की
अपने चरण से ,वे पूरी तरह से खोखले है
(3)
साध्य नही साधन भी पावन होने चाहिये
ये उत्तम सबक हमे ,अपने पूर्वजो से मिले है
(4)
ईना दमी कि असलियत बयान करता है
गहन खामोशीयो मे ,चिन्तन के दीप जले है
(5)
जिनके वादो कि कसमे ,खाया करते थे लोग
उनकी वादा खिलाफी से ,हम भीतर तक हिले है
(6)
कब तलक अभावो मे ,दम तोडेगी प्रतिभा
साधनो के दम पर ,बढे जुगनूओ  के हौसले है
(7)
सिफारिशो कि भेट चढी ,प्रशासनिक व्यवस्थाये
अव्यवस्थाओ  से कब ,मुरझाये चेहरे खिले है
(8)
जिनकी यादे है,आज  भी दिलो दिमाग मे
उन जैसे हमराही ,मुकद्दर सेही  तो मिले है
(९)
कौन खाता है खौफ, अब कौरी धमकियो से
सीने मे दफन ज्वालामुखी, देखे हमने जल जले है

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

दशहरा त्यौहार

दश दुर्गुण का दहन करो तो ,दशहरा त्यौहार
दशो दिशाओ में बिखराओ, सुन्दर और सच्चा व्यवहार

दश विद्या की करो साधना ,कष्टों का होगा उपचार
दश मस्तक सी जगे चेतना ,उन्नत पथ का यह आधार

दश इन्द्री पर हो अनुशासन, तो सपने होगे साकार
दश पर टिकता अंक गणित है, दर्शन का है मूल आधार

मानव मन की अहम् भावना ,कलयुग में रावण अवतार
दशानन सा जगा लो पौरुष ,फिर करना उसका संस्कार

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

ईश्वर प्राप्ती

भक्ति से विरक्ति पैदा होती है
अौर शक्ति जाग्रत होती है
भक्ति से अहंकार से मुक्ति मिलती है
अौेर ईश्वर शरणागती होती है
जो भक्ति व्यक्ति मे विरक्ति के स्थान पर
अासक्ति पैदा करे
अौर ईश्वर शरणागति के स्थान पर
अहंकार उत्पन्न करे
वह भक्ति व्यक्ति के अात्मोत्थान करने के स्थान पर
उसके पतन का कारण होती है
अहंकार शून्य एवम समर्पित भाव तथा कर्म से कि
गई ईश्वर साधना से ईश्वर प्राप्ती सुगमता व शीघ्रता से होती है

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज