शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

मरुथल मे जैसे हो नीर

सज-धज कर आई  है गौरी, घर-आँगन को  लीप
टिम- टिम करते अंधकार मे, नन्हे -नन्हे  दीप !!1!!

दर-दर दिखती है रंगौली , दीपो का उत्सव
ज्योतिर्मय फैला उजियारा, गुजरा तम नीरव !!2!!

निराशा को तज ले प्यारे,गा खुशियो के गीत
गहन अमावश की निशा से,लक्ष्मी जी को प्रीत !!3!!

कोटि तारे आसमान मे का प्रकाश होता निर्जीव
अंधियारे कि कैसी सत्ता ,रहते है उसमे भी जीव!!4!!

घर-आँगन मे दीप जले तो ,ज्योतिर्मय त्यौहार
मन के भीतर अहं गले तो ,सुधरे व्यक्ति का व्यवहार !!5!!

तम मे दीपक का उजियारा,मरुथल मे जैसे हो नीर
टिम-टिम करता अंधियारे मे ,जुगनू की जाने कोई पीर !!6!!

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज