रविवार, 13 नवंबर 2011

गीत और संगीत करे ईश का गुणगान है

सुर भरी सुबह है सुर मयी शाम है,
पंछीयों के गान से मिट गई थकान है

बारीश की छम-छम से बजती नुपूर है,
महफिले है कुदरत कि नाचते मयुर है
नैसर्गिक जीवन मे संगीत विज्ञान है

झरनों के कल-छल मे राग है बसे हुये
भॅवरो की गुंजन भी रागीनि लिये हुये
कोकिल के कंठ से निसर्ग करती गान है

परमात्मा से रही आत्मा को प्रीत है
भावों से परिपूर्ण गीत और संगीत है
गीत और संगीत करे ईश का गुणगान है

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज