शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

रह गई अधूरी बात थी


वो एक अँधेरी रात थी
उस रात में कोई बात थी
हुई रात भी जज्बात थी
रह गई अधूरी बात थी


एक ख़्वाब का घर जल गया
खुली आँख से काजल गया
फिर भी भरम में हम रहे
विश्वास से हुई घात थी

मिला दिल का नहीं सकून था
बचपन गया कही गुम था
रिश्तो का हुआ खून था
निहित स्वार्थ की सौगात थी

हमें प्यार से जो भी मिला
करता रहा शिकवा गिला
कही चाहत भरा न पल मिला
मिली दिल की नहीं किताब थी

चले रास्तो पे दो कदम
मिली रिश्तो से थी हर चुभन
भरे नीर से मेरे नयन
दुःख दर्द की बरसात थी

नहीं हौसलों को बल मिला
मिले धोखे तो निश्चय हिला
लुटी ख्वाहिशे फिर भी चला
चलते हुए हुई रात थी

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज