गुरुवार, 29 मार्च 2012

दे बुध्दि माँ शारदे,बन जाऊ मै बुध्द







 
बुध्दि के बिन ज्ञान का, क्या होता उपयोग
बुध्दि ही तो ज्ञान देत ,दे उद्यम उद्योग

दे बुध्दि माँ शारदे,बन जाऊ मै बुध्द
निर्मल पावन ज्ञान मिले ,आचरण हो शुध्द

शुध्द चित्त का मंत्र ही ,गायत्री को जान 
आत्मा को उत्थान मिले ,मिले मोक्ष निर्वाण

ज्ञान दायिनी शारदे, मुझको कर विद्वान
बुध्दि की विशुध्दी मे ,निहीत सच्चा ज्ञान

ब्रह्मदेव मे ब्रह्म बसे,दूर हो मन के भ्रम
ब्रह्मा संग माँ शारदे, अनुकुल फल दे श्रम

छल से बिगड़ा आज है ,छल से बिगड़ा कल
 बुध्दि अति बलवान  है ,बुध्दि है बीरबल

बुध्दि में ही ज्ञान रहा  ,बुध्दिमान हनुमान 
बिन बुध्दि के ज्ञान रहा ,रावण का अभिमान 

सदबुध्दी के साथ रहे ,राम कृष्ण भगवान 
 ज्ञान गया दुर्बुध्दी का  , खोया पद सम्मान 


सोमवार, 26 मार्च 2012

कहाँ मेरे कृष्ण है

खोजता चारो तरफ मै कहाँ मेरे कृष्ण है 
पंथ पर कठिनाईया है और ढेरो प्रश्न है

ख़्वाब के जो थे किले वे खंडहर बन ढह गये 
भाग्य में जो दुख लिखे थे जिंदगी भर रह गये 
कुचलती सम्भावनाये ,होते नहीं अब जश्न है 

पाने को उत्सुक रहा हूँ  इष्ट तेरी साधना है 
राधे भी तुम ही हो मेरे ,तू मेरी आराधना है 
 टूटती मनोकामनाये,उलझे हुए कई प्रश्न है 

हो रही है हर दिशा में स्वार्थ की ही जंग है
कर्म क्षेत्र में खड़े पर  सारथे नहीं संग  है 
आचरण है छल कपट के पर सत्य ही वितृष्ण है

भावो  की खो गई सीता ,फैला हुआ चहु छद्म है 
गीतों में बसती न गीता ,काव्य नहीं पद्म है 
कृष्ण को मिलता न अर्जुन,पार्थ को न कृष्ण है

फूलो सा स्पर्श है

प्रियतम मेरा चाँद है ,सागर का किनारा  है
उसकी यादो को सीने से लगाया है संवारा है
फूलो सा स्पर्श है,प्रियतम ह्रदय का हर्ष है 
प्रियतम बिन यह दिल पागल है आवारा है

ठहर हुई हवाए है सताती उसकी याद है
सोचता हूँ सुन ले वह दिल की फरियाद है
समाई है वह साँसों में और अहसासों में
वह बनी आँखों की नींद ,जीवन का  स्वाद है

शनिवार, 24 मार्च 2012

गहन तिमिर निगलना होता है

दीपक बन जलने से अंधियारा जीवन का दूर होता है 
जला नहीं गला जो केवल पिघल कर चूर होता है 
औरो से क्या जलना है ,स्वयं में ही पिघलना है 
दीपक सम जल कर गहन तिमिर निगलना होता है  

इस्पाती इरादों के बल प्रतिपल  चलना होता है 
धधकते अंगारों के बीच लोहे सा ढलना होता है  
परस्पर विश्वास का सहारा न मिल पाए तो   
आत्मविश्वास के बलबूते जीवन भर चलना होता है 

सागर की गहराई में सपनो को नित मचलना होता है 
लहरों पर प्राणों लेकर  नैया को पल पल  चलना होता है  
 कौन कहता है उखड रही साँसों में संकल्प नहीं होता 
घने अंधेरो के भीतर से नित  नित निकलना होता है 

उज्जवल,कोमल निर्मल कहाँ जल

कल -कल छल-छल बहता है जल
थम गई बारिश निकले खग-दल

सूख गई माटी,बढ रही घाटी
जंगल जंगल हो गया दंगल
जन बल निर्बल,धन बल का बल
जल-थल पल-पल बनते मरुथल

 ऐसा वैसा क्या करे पैसा 
मौसम हो गया मानव जैसा
बढ गया भ्रम जल,घट गया भू जल
लालच का दल ,निकला मल जल

करते हम तुम मनमानी है
ढूँढते रह गये शुध्द पानी है
उज्जवल,कोमल निर्मल कहाँ जल
सुध-बुध खो गई थम गई हल-चल

रविवार, 18 मार्च 2012

वीरो की भूमि चित्तौड़गढ़

चित्तौड़गढ़ वीरो की भूमि है
वीरो ने पराक्रम की पराकाष्ठाए चूमी है
पराक्रम की पराकाष्ठाए महाराणा के इर्द -गिर्द घूमी है

चित्तौड़गढ़ राणा प्रताप का भाला है 
अडिग रही आस्थाये दुर्बल निष्ठाओ का मुंह काला है 
लौटा है शक्ति सिंह फिर अपना घर सम्हाला है 
चेतक सा अश्व है
 जानवर ने भी देशभक्ति का धर्म पाला है

चित्तौड़गढ़ गढ़ो का गढ़ है
कायरो के गाल पर वीरता का थप्पड़ है
 कट गया मस्तक पर लड़ता रहा धड़ है
राष्ट्रीयता का गान है स्वदेशी की जड़ है

चित्तौड़गढ़ पद्मिनियो का जौहर है
सतीत्व की है राजधानी है 
पराजय में भी विजय की अद्भुत कहानी है  
किले की दीवारों में लिखी हुई देशप्रेम की इबारत पुरानी है 
गौमुख  की धारा से निकलती  ऐतिहासिक परम्पराए सुहानी है

चित्तौड़गढ़ गोरा बादल है 
स्वाभिमान की रक्षा हेतु लड़ता पत्ता जयमल है 
वीरता का परपंरा पुरुष बप्पा रावल है 
झेल  कर अस्सी घाव लड़े राणा सदल -बल है
चित्तौड़गढ़ गद्दारों के बीच विश्वास का पौषक ,शक्ति पूजा का कमल है 
हर प्रकार की गुलामी के मध्य आजादी की हल -चल है

चित्तौड़गढ़  राणा प्रताप की सौगंध है 
 माटी से किया गया लाडले बेटो का अनुबंध है 
विजय स्तम्भ पर लिखी गई मेवाड़ की विजय  कहानी है 
राजस्थान राज्य की पराक्रम राजधानी है 
यह महाराणा उदय सिंग का उदय है 
पन्ना धाय का पुत्र बलिदान राष्ट्र भक्ति काल जय है 

चित्तौड़गढ़ मीरा की भक्ति है 
मीरा की भक्ति में कान्हा की आसक्ति है 
कान्हा की आसक्ति में आत्मा की मुक्ति है   
किले की उंचाइयो से नदी ही नहीं पूरी सदी दिखती है 
रक्त भरी कथाये ऐतिहासिक यादो से कहा मिट सकती है


इसलिए चित्तौड़गढ़  हर अर्थ में आज भी सार्थक है 
जैसे वीरता के बिना बल तथा 
चरित्र के बिना रूप होता निरर्थक है  
देशभक्ति के बिना धनवान को धिक्कार  है 
 दानवीर भामाशाह सर्वस्व न्यौछावर  हेतु आज भी तैयार है 


शुक्रवार, 16 मार्च 2012

माता की दुलारिया

कैसे बनी साधारण से असाधारण  नारिया
पल्लवित हुई  उद्यान में  फूलो की क्यारिया 

 चारित्रिक संस्कारों से वे  थी भरपूर
सभी कलाओं में प्रवीण ,बांधे पाँव में नुपुर
चढ़ी हिमालय चोटी झेली कई दुश्वारिया

अन्तरिक्ष की  वो थी कल्पना दे गई वेदना
बहन सुनीता विलियम ने हमें दी संवेदना
ज्ञान विज्ञान से चहकी माता की दुलारिया

ओद्यौगिक क्रांति में है ,जिनका अहम योगदान 
भारतीय  मूल्यों का रखा सदा उन्होंने ध्यान 
उठा ली परिवार के साथ देश की जिम्मेदारिया

 सेवा समर्पण की है जिनकी ,अनुपम कहानी 
कभी माँ बहन ,तो कभी बनी डॉक्टर नर्स रानी 
दिवाली की है उजास ,रंग पंचमी की पिचकारिया

बुधवार, 14 मार्च 2012

भक्ति

भक्ति से शक्ति मिले ,शक्ति से मिले शिव
शिव शरणम में जो गया ,
सजीव हो गया जीव
-
भावो में भक्ति रही ,नवधा भक्ति जान
भक्ति से श्री हरी मिले , मिटे मिथ्य अभिमान

भक्त भजे भगवान् को ,भगवन बसे ह्रदय 
जो भगवन के ह्रदय बसे ,उसकी मुक्ति तय 
मीरा सूर रैदास रहे ,कान्हा में विभोर 
तुलसी की रामायण में ,मुक्ति की है डोर 
-
राधा मीरा पार गयी ,भक्ति नदिया चीर
जप तप करते नहीं मिली ,कान्हा तेरी पीर 

-
भक्ति रस की खान है ,भक्ति है हनुमान 
सरयू तट केवट हुई ,भक्ति की पहचान 
-
भावो का एक योग ही ,भक्ति को तू जान 
भक्तो को यहाँ ढूंढ रहे ,दीनबंधु भगवान् 

राजा और महाराज रहे ,हर युग में चहु और 
भक्तराज प्रहलाद हुए ,था सतयुग का दौर
 

रविवार, 4 मार्च 2012

नारी

चन्दा  संग है ढली चाँदनी 
पूर्ण चन्द्रमा बना सिकंदर
                -
 तन मन सुन्दर चिंतन सुन्दर 
 धरा हरी तो जीवन सुन्दर 
 माता का ममतापन  जिसमे 
रूप पत्नी सा अनुपम सुन्दर 
               -
बिटिया सी प्यारी न्यारी है 
,प्यार है पाया सात समंदर
 करते क्यों छलनी अवनी को 
हीरे मोती इसके अन्दर
              -
 नारी की काया छाया से 
जग में होता हर पल सुन्दर 
 नियति भी नारी का रूप 
बहती सरिता महका अम्बर
                  -
विनीता सम सरिता है रहती 
सरिता से मिलता है समंदर 
 नारी का आश्रय  मिलते ही 
सुधरा जीवन हटे बवंडर

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज