शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

वे भीतर से रीते है


आकाश सा आँचल हो सागर सा जल हो
ममता हो, विश्वास हो, स्नेहिल पल हो
निष्ठाए हो फौलादी आत्मा में बल हो
मानवीय आचरण सरल हो निश्छल हो

अपमानो का हलाहल पीकर जो जीते है
लिए दर्द जिगर में जख्मो को सीते है
कभी होते गिरधर कभी शिव के रूप
जो सुखो में रहते है वे भीतर से रीते है

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज