गुरुवार, 20 जून 2013

बद्री और केदार

प्रकृति में शक्ति है शक्ति में समाहित शिव है 
शक्ति के बिना शरीर ही नहीं शिव भी निर्जीव है 
शिव  की पूजा में आस्था है अभिषेक है आचमन   है
शक्ति पूजा में भक्ति है प्रार्थना है शुध्द चित्त और मन है 
रहे प्रकृति सुरक्षित और रहे निर्मल पर्यावरण है 
शिव पूजा में हमारी होती आस्थाए कम है
 मनो मस्तिष्क में पले  कई भ्रम है 
शिव शक्ति की संयुक्त पूजा में प्रकृति का  संरक्षण है 
पुरुषार्थ है बल है और परिश्रम है 
फिर क्यों हुई विनाश लीला दिलो में गम और आँखे नम है 
येन केन प्रकारेण  हमने प्रकृति को सताया है 
प्रकृति को सता कर शिव शम्भू और केदार को किसने पाया है 
इसलिए शिव और शक्ति की पूजा के नवीन मानदंड अपनाओ 
प्राकृतिक संसाधनों को बचाओ 
शिव और शक्ति को तन मन में बसाओ 
प्रकृति में समाहित बद्री और केदार है 
ईश्वर  उञ्चाइयो में ही नहीं गहराईयों में भी है
 नैया की पतवार है 
परम सत्ता के बल पर टिका हुआ यह संसार है 

1 टिप्पणी:

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज