गुरुवार, 26 सितंबर 2013

निर्धनता मन में भरी हुई

राहे कांटो से भरी हुई 
खुशिया दुखो से डरी  हुई
कुंठित होती अभिलाषा है
 तृष्णाए  मन में हरी हुई

हुए स्वप्न पखेरू
है घायल
 और नदी हिलोरे लेती है 
जहरीली होती  हुई फसले
फसले  पोषण कहा देती है
रेतीले सुख बहे जाते 
आशा जीवन में मरी हुई

यहाँ मिला सत्य को निर्वासन 
सज्जनता दुःख सहती है
नारे नफ़रत से भरे हुए 
दानवता विष को बोती  है
यहाँ दया दीन  पर नहीं आई
 निर्धनता मन में भरी हुई 

यहाँ मिला दीप से काजल है 
निर्बल का होता मृग दल है 
हुआ दीप शिखा से उजियारा 
उजियारे में होता बल है 
रोशन होता है अंधियारा
बिंदिया  मांथे पे धरी हुई

शनिवार, 21 सितंबर 2013

पायलिया सी खनक रही, रूपवती की देह

बारिश बूंदे बरस रही ,बरस रहा है नेह
पायलिया सी खनक रही, रूपवती की देह 

रूप सलौनी चंद्रमुखी ,अंधियारी है रात
अंधियारे में बहक रहे ,तन मन और जज्बात

मन में क्यों कलेश रहा ,क्यों कलुषित है चित
है  नारायण  साथ तेरे  ,मत हो तू विचलित

नदिया निर्झर बह रहे ,निर्मल बारिश जल 
आसमान भी स्वच्छ हुआ ,स्वच्छ हुए जल थल
 

बुधवार, 18 सितंबर 2013

आत्मा प्रदीप्त है

अंधियारे में जलता ,आस्था का दीप है
आस्था में पूजा  है ,ईश्वर समीप है  
भक्ति में शक्ति है ,शक्ति में है ऊर्जा 
ऊर्जा है भीतर तक ,आत्मा प्रदीप्त है 

तन मन के भीतर ही ,ईश्वर की खोज है 
आत्मा में पावनता ,अंतस में ओज है 
तन मन को चिंतन को ,कर निर्मल जीवन को
चिंतन है चित में ही, कीर्तन में मौज है  http://4.bp.blogspot.com/_e8FOXal27sQ/TCeI_rtQ0SI/AAAAAAAAAIY/xSq_DNVgWXo/s400/Deepak.jpg

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

पढ़ा दर्द का पहाड़ा है

लहराता हुआ जल है ठहरा हुआ आकाश है
बिखरे हुई रिश्तो में हुई अपनों की तलाश है
प्रेमाकुल पायलिया पर मिटता  विश्वास  है
जीवन के चारो ओर  फिर बिखरा विनाश है

बिगड़तेहुये  हालात  को लोगो ने बिगाड़ा है
गुलशन हुए इस घर फिर किसने उजाड़ा है
चाहो की राहो को मिली नहीं राहत है
आहत  हुई भावनाए ,पढ़ा दर्द का पहाड़ा है

बुधवार, 11 सितंबर 2013

दंगे तेरी भेट चढ़ी, चलती हुई दूकान

जहां  चाह वहा राह मिली ,चाहत कितनी दूर
चल चल कर थक पैर गए, हो गए थक कर चूर

चेहरो पर मुस्कान नहीं ,उजड़े हुए मकान
दंगे तेरी भेट चढ़ी,  चलती हुई दूकान

महलो के मोहताज नहीं ,बचता एक ईमान
रहा सत्य ही शीर्ष पर ,सत्य करे विषपान

रिश्ते रस से हीन हुए, नहीं बचा कही रस
ममता मन से छूट गई ,प्रीत हुई बेबस

राज गए महाराज गए ,गए संत अब जेल
जेलों में अब खूब हुई ,रेलम -ठेलम -पेल

सोमवार, 9 सितंबर 2013

सुन्दर सज्जन प्रीत से रहते क्यों अनजान

सुन्दरता  अभिशाप नहीं सुन्दरता वरदान
सुन्दर सज्जन प्रीत से रहते क्यों अनजान

मानसिक सौन्दर्य  बिना, खिला नहीं कोई रूप
सुन्दरता बिखरी हुई ,नैसर्गिक स्वरूप

विश्व मोहनी बुला रही , लूट रही है चैन
भस्मासुर भी भस्म हुआ ,भगवन की थी देन

यहाँ मुख्य सौन्दर्य नहीं मुख्य  हुआ है ज्ञान
मुखरित होता मुख से ,वाणी से विद्वान

 वाणी में सौन्दर्य नहीं  जिव्हा कड़वी नीम
कोरे रूप को क्या करे ,जीवन हो गमगीन

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

कायर वीरो का स्वामी है

अब घृणा गिध्द ने भावो के घावो को खाया नोचा  है
ह्रदय में उनकी याद रही आहे भर भर  कर
सोचा है

 हो  नयन  शून्यवत ताक रहे एकांत रहा  एक साथी है
रही असत तमस की साजिशे चींटी बनती अब हाथी है
दुखड़ो से मुखड़े सिसक रहे  अश्को
को किसने पोछा है

पथ पर है कांटे और कंकड़ मिली कर्मो को गुमनामी है
कायरता इतनी भरी हुई कायर वीरो का स्वामी है 

शब्दों से घायल होता मन हर बोल यहाँ पर ओछा  है 

सुख दुःख गम खुशिया साथ रहे अपनों से इनको बाँट रहे
सपने बनवाते शीश महल रही चहल पहल और ठाट  रहे
मिलता जख्मो को दर्द यहाँ ,जख्मो को गया खरोचा है 

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

खुशिया

खुशिया मिलती नहीं खुशिया चुराई जाती है
रिश्तो को  सींचने से खुशिया पाई जाती है
जब हम दूसरो को खुशिया देते है तो किसी पर अहसान नहीं करते है
अपने भीतर को खुशियों से संजोते है 
खुशियों में जीते है खुश होकर मरते है
ख़ुशी की अपनी अपनी परिभाषाये है
खुश होकर जिए यह हर जन की आशाये है
पर  आशाये ही रखे यह तथ्य व्यर्थ है
तरह तरह से खुश रहे सही खुशिया पाए ऐसे सुख से हम हुए समर्थ है
ख़ुशी कभी सुख सुविधा से नहीं आती है
सच्ची ख़ुशी अभावो के भीतर आत्मा को निखरा  हुआ पाती है
आत्मीयता की ऊर्जा पाकर जीवन में सक्रियता सदभाव  फैलाती है
आपसी सद्भाव से ही पाया उल्लास है
खुशिया चहु और बिखरी रहे मिलता रहे विश्वास  है

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज