शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

कायर वीरो का स्वामी है

अब घृणा गिध्द ने भावो के घावो को खाया नोचा  है
ह्रदय में उनकी याद रही आहे भर भर  कर
सोचा है

 हो  नयन  शून्यवत ताक रहे एकांत रहा  एक साथी है
रही असत तमस की साजिशे चींटी बनती अब हाथी है
दुखड़ो से मुखड़े सिसक रहे  अश्को
को किसने पोछा है

पथ पर है कांटे और कंकड़ मिली कर्मो को गुमनामी है
कायरता इतनी भरी हुई कायर वीरो का स्वामी है 

शब्दों से घायल होता मन हर बोल यहाँ पर ओछा  है 

सुख दुःख गम खुशिया साथ रहे अपनों से इनको बाँट रहे
सपने बनवाते शीश महल रही चहल पहल और ठाट  रहे
मिलता जख्मो को दर्द यहाँ ,जख्मो को गया खरोचा है 

1 टिप्पणी:

  1. नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (08-09-2013) के चर्चा मंच -1362 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज