सोमवार, 9 सितंबर 2013

सुन्दर सज्जन प्रीत से रहते क्यों अनजान

सुन्दरता  अभिशाप नहीं सुन्दरता वरदान
सुन्दर सज्जन प्रीत से रहते क्यों अनजान

मानसिक सौन्दर्य  बिना, खिला नहीं कोई रूप
सुन्दरता बिखरी हुई ,नैसर्गिक स्वरूप

विश्व मोहनी बुला रही , लूट रही है चैन
भस्मासुर भी भस्म हुआ ,भगवन की थी देन

यहाँ मुख्य सौन्दर्य नहीं मुख्य  हुआ है ज्ञान
मुखरित होता मुख से ,वाणी से विद्वान

 वाणी में सौन्दर्य नहीं  जिव्हा कड़वी नीम
कोरे रूप को क्या करे ,जीवन हो गमगीन

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज