रविवार, 29 दिसंबर 2013

भक्ति में रहता समर्पण

भक्ति में रहता समर्पण और त्याग में संन्यास है 
भावना का यह सरोवर ,नहीं वाक्य का विन्यास है 

रहता निश्छल ह्रदय में ,भाव से अभिभूत है 

आत्मा होती बैरागन ,मन हुआ अवधूत है 
आस्था है चिर सनातन ,भक्त का विश्वास  है 

 जानता है मानता है ,पर कहा वह सुख है 
राधा जी  रूठी हुई है ,हर ख़ुशी में दुःख है 
भक्ति में शक्ति है रहती और प्रेम में उल्लास है 

राम से होती रामायण, श्रीकृष्ण से संगीत है 
प्यार कि हर हार में ही ,होती ह्रदय की जीत है
भाव भी भींगे हुए है पर बुझ  पायी प्यास है

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज