सोमवार, 20 अक्तूबर 2014

दिवाली है

अमीर हो या गरीब 
उजला धन हो तो दिवाली है 
जन निर्धन हो या सम्पन्न 
मन प्रसन्न हो तो दिवाली है 
ब्लैक मनी नहीं है हनी 
व्यवस्था भ्रष्ट हो तो जिंदगी काली है 
प्रशासन सख्त हो  कामकाज में
 व्यस्त हो तो दिवाली है 
जीवन हरा भरा हो 
अपराधी  डरा  डरा  हो तो दिवाली है
 सेवा  ही धाम हो 
भक्ति निष्काम हो तो खुशहाली है 
धड़कन में राम हो
 मन में विश्राम हो तो दिवाली है

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज