सोमवार, 3 नवंबर 2014

भाव के नहीं ईख है

जिंदगी है धार नदिया  है 
दर्द है तकलीफ है 
हार तो मिलती रही है 
जीत में कहा सीख है 
चाहतो के मिल रहे शव
,राहते  मिलती नहीं है 
प्यार की तुलसी है झुलसी 
नहीं वक्त की मिली भीख है

हर तरफ चिंगारियाँ है 
किलकारियाँ है चीख है 
प्यास ठहरी अधबुझी है
फिर मिली कालिख है
विष घोले  है सपोले  
होले  होले मन टटोले
नीम करेले है कसैले 
भाव के नहीं ईख है

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज