बुधवार, 30 दिसंबर 2015

जीवन के सरोकार


प्यार में कोई शर्त नहीं होती
आस्था और विश्वास में कोई संशय नहीं होता
ममता करुणा और स्नेह की कोई सीमा नहीं होती
क्षमताये जाग्रत हो जाए तो असीम है
अहंकार के कई रूप है प्रकार है
अहंकार में समाहित रहे समस्त विकार है
अमर ,शाश्वत सनातन रहे विशुध्द विचार है
वैचारिक विरासत सबसे उत्तम है
भौतिक विरासत में पलते कई गम है
संस्कारो की विरासत को जिसने पाया है
जीवन में रही अक्षय ऊर्जा रही कीर्ति की छाया है

युध्द रत हर घाव है

रक्त से लथ पथ हथेली ,पथ फिसलते पाँव है 
श्रम सीकर से है सिंचित ,लक्ष्य की यह छाँव है 

पंथ पर न चिन्ह अंकित, चहुओर बिखरी रेत  है 
नभ पर चिल गिध्द उमड़े, क्षितिज होता श्वेत है 
प्यारा सा बचपन बचा लो ,युध्द रत हर घाव है 

नियति क्यों होती है निर्मम खेलती रही खेल है 
निज रक्त भी होता पिपासु ,परजीवी विष बेल है 
कष्ट में रहता कौशल्य ,अकुशल के भाव है

रविवार, 8 नवंबर 2015

रहो न केवल मौन यहाँ ,ज़िंदा जगती कौम


लोह पुरुष सरदार थे, लोहे सा संकल्प 
 माटी का अभिमान रहा ,अहम भाव न अल्प 
 
होता झगड़ा रोज है, होता रोज बवाल 
कश्मीर से प्रीत करो ,भारत माँ के लाल 

ऐ.के सैतालिस रही, उग्रवाद के हाथ 
उग्रवाद उन्मत्त रहा ,होती जनता अनाथ 


भर भर झोली लेत रहे ,चले चाल पर चाल  
 रहे दोगले देश यहाँ, लंका और नेपाल

जल न जाए देश यहाँ ,क्यों बनते हो मोम 
रहो न केवल मौन यहाँ ,ज़िंदा जगती कौम

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

आई करवा चौथ है ,बीत गई है तीज

प्यारा सा संसार रहे, प्यार बसे  हर बोल 
प्रीती और अनुराग लिए ,करवा व्रत को खोल 

मन व्यापे न आग कही ,तन  व्यापे न दोष 
पानी के दो घूँट में ,व्यापत  है संतोष 

मन न विष का वास रहे, प्रीती  हो  अटूट 
पी ले करवा चौथ पर, पानी के दो घूँट 

सूख गया गल कंठ अब ,सजना समझो पीर 
प्यारे से परिवार में ,मत खींचो लकीर 

सजनी तेरे प्यार में ,चंदा क्या है चीज 
आई करवा चौथ है ,बीत गई है तीज

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

झोपड़ी खपरैल है

छत  पर छप्पर कवेलू ,झोपड़ी खपरैल  है 
कच्ची है पर सच्ची रहे ,फैली रेलम पेल है 

झाड़ और झुरमुट खड़े है ,टेडी मेडी मेढ़  है 
आती जाती बैल गाडी ,हिलते डुलते  पेड़ है 
माटी के बनते खिलौने ,काठ बनती रेल है 

हुई अकड़ती एक ककड़ी ,नन्हा सा एक झाड़ है 
देशी बोली में ठिठोली ,अम्मा देती लाड़ है 
हल को धरता है हलधर,  हीन हिनाते बैल है 

गाँवों में होता है जीवन ,सीधे सच्चे गाँव है 
खेतो से चल कर निकलते ,खुर दरे से पाँव है
खेती में होता परिश्रम ,होती नहीं वह खेल  है

शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

ताकते प्रतिबिम्ब है

झाँकते हर और चेहरे
 ताकते प्रतिबिम्ब है 
रास्ते जल से भरे है 
 दृश्य होने भिन्न है 

दिखती है दिव्यता तो 
प्राची की अरुणाई में 
ओज और ऊर्जा पवन में 
उम्र की तरुणाई में 
रह गई परछाईया है 
वक्त के पदचिन्ह है 

दृष्टिगत होते क्षितिज में 
कल्पना के रंग है 
उम्र भर उड़ती  रही है
लक्ष्य की पतंग है 
वृहद व्यथा की कथा है 
मन क्यों होता खिन्न है


बुधवार, 16 सितंबर 2015

मानव बनता है दानव

बजता डमरू महाकाल का 
नाच रहे नंदी भैरव 
नर से होते नारायण है 
अर्जुन के केशव माधव 

ऊँचे पर्वत गहरी नदिया
नभ पर पंछी की कलरव
हलचल होती मन के भीतर
सृजन स्वर उपजे अभिनव
झरते झरने सात समंदर 
गहरे जीवन के अनुभव 
अंधड़ ,पतझड़ ,बारिश की झड़,
मौसम होते असंभव 

ताल सरोवर भूमि  उर्वर 
गिरता उठता है शैशव 
धर्म कर्म की बात पुरानी 
नया पुराना होता भव 

जीवन से होता परिचय तो 
जीवन की लीला है नव 
जीवन ले ले कुदरत खेले 
विपदायें भीषण तांडव 

कटते  जंगल होते दंगल 
मानव बनता  है दानव 
विस्फोटक की खेप पुरानी 
क्षत विक्षत बिखरे है शव

सोमवार, 14 सितंबर 2015

पुष्प से माला पिरोई

भाव सृजन की धरा  है 
लेखनी मन  में डुबोई 
आत्मीयता ह्रदय में
 प्यार की आशा संजोई 
चित्त  में चित्तचोर रहता
 शब्दहीन संवाद करता 
श्याम ने पाई न राधा
 बाधाये जाने न कोई 


हाथो में मेहंदी रची ज्यो 
भक्ति प्रीती में भिंगोई 
श्याम की बंशी बजी तो 
 मीरा राधा सी है खोई 
गंध और सुगंध पाने 
भवरे होते   है  दीवाने 
पंख  सपनो से जुड़े है 
पुष्प  से माला पिरोई

रविवार, 23 अगस्त 2015

राखी में आशा समाई

दर्द के हालात है, या फिर यहाँ कुछ और है 
आचरण छल से भरे है , हर आवरण में चोर है
विशिष्ट न अब  शिष्ट रह गए , विशिष्ट अब निकृष्ट है
शुध्द न पर्यांवरण है, दिखती नहीं कही भोर है 


अश्रु से आँचल भरा है ,आँख रोई है भींगोई
पीड़ा क्रीड़ा कर रही है, ,माँ तो बैठी है रसोई 
भैया भाभी ले गए है ,राजू अम्मा रह गए है 
राखी न आई कही से ,आये न बहना बहनोई 

बहना  हो गई है पराई 
बहना की राखी है आई 
राखी में रहती सुरक्षा 
 राखी में आशा समाई 
 





शनिवार, 22 अगस्त 2015

एक मुलाक़ात बाकी है

छू  लो नभ को सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए
अभी भी बहुत साहस है कुछ  सांस  बाकी है 

पा लो खुशियो को हालात से लड़ते हुए 
संघर्षो का साथ जज्बातों की बरात बाकी है 

जी लो हर पल को उल्लास से बढ़ते  हुए 
जीवन नहीं है नीरस रस भरा मधुमास बाकी है 

बुझा लो प्यास अंजुली भर आचमन से 
बहुत ताजा है पानी पूरी बरसात बाकी है 

बहुत किलकारियाँ भीड़ है चहु शोर है 
मिले ख्वाईश को पंख एक मुलाक़ात बाकी है

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

भाव विसर्जन

अंजन ,मंजन, मन का रंजन 
वंदन, चन्दन, भावुक बंधन

नवल ,धवल है साँझ सवेरे 
सपने तेरे ,सपने मेरे 
स्वप्न प्रदर्शन ,चित का रंजन

अर्पण ,तर्पण, व्याकुल दर्पण 
लगी प्यासी है ,भाव समर्पण 
दया भाव हो ,नहीं हो क्रंदन 

सर्जन, अर्जन, भाव विसर्जन 
मिली सांस , पाया बल वर्धन 
गजल गीत का, हो अभिनंदन 

छाया माया ,कुछ भी न पाया 
शिल्प कला से ,मन भर आया
कला कर्म का ,महिमा मंडन

गुरुवार, 23 जुलाई 2015

चहकी नदिया महका जंगल





बरसी ज्यो बारिश की बूंदे 
प्रियतम चाहत हुई घायल 
चित चोर मोरनी थिरक रही 
छम छम सी बजती बिन पायल 
सरिता में धारा की हलचल 
मद मस्त हिलोरे हुई चंचल 
उठ और पखेरू उड़ता चल 
राह ताक रहे जल के बादल 
आशा क्यों अस्त हुई जाती 
दीपक की बाती  सा तू जल 
हो निर्मल मन उजला सा तन 
चहकी नदिया महका जंगल

मंगलवार, 12 मई 2015

माँ और मैं

माता से यह देह मिली माता से संस्कार
माँ के पावन चरणों में वंदन बारम्बार

माँ ममता को बाँट रही माता का वात्सल्य
माँ से मुक्ति मार्ग मिला माता से केवल्य 

माँ का चेहरा भूल गया भुला न पाया स्नेह
हर धड़कन माँ व्याप्त रही व्यापे मन औ देह 

माँ ने अब तक दुःख सहा सुख न पायी माँ
माँ मिटटी बन मिट गई दुःख से काँपी माँ 

कांप गया नेपाल यहाँ आया जब भूचाल
धरती माता हिल रही पूछती रही सवाल 

काया थर थर काँप रही जीर्ण शीर्ण है देह
बूढ़ी आँखे तरस रही मिला न निश्छल स्नेह

 

रविवार, 3 मई 2015

एक दृश्य -भूकम्प

आज वहा उजड़े कई  घर है 

बिखरे परिवार है 

कुछ लोग जो कल तक जीवित थे 

गुमशुदा या  विदा है

ऊँची  -ऊँची  अट्टालिकाएं 

जो कल तक थी इतरा रही 

हो गई कुछ ढेर 

जो बची है वे हो जायेगी ढेर देर -सबेर 

एक बच्चा और एक औरत 

तलाशते है सामान को 

मिल जाए टूटे घर में से 

कुछ बरतन खान पान को 

पर मिलता नहीं यह कुछ

मिलता है मलबे के ढेर में 

एक माँ को बेटे का 

एक बेटे को माँ का 

एक पत्नी को पति का शव

रोते  बिलखते परिवार 

बच्चो की किलकारिया

 ममता से वंचित शैशव 

 


 



 





शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

जीवन जल की धारा सा

आसमान में तारा सा 
जीवन जल की धारा सा 

बहती हुई हवाये  है 
सुख दुःख इसमें पाये है 
हारा सा दुखियारा सा 
खट्टा मीठा खारा सा 

किस्मत किसने पाई है
 सुख सपने परछाई है 
सपना एक कुंवारा  सा 
जीवन दर्द दुलारा सा

जल निर्मल कोमल हो मन 
परिवर्तन जीवन का धन 
 सूरज के उजियारा सा 
जीवन  सबसे प्यारा सा


न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज