बुधवार, 16 सितंबर 2015

मानव बनता है दानव

बजता डमरू महाकाल का 
नाच रहे नंदी भैरव 
नर से होते नारायण है 
अर्जुन के केशव माधव 

ऊँचे पर्वत गहरी नदिया
नभ पर पंछी की कलरव
हलचल होती मन के भीतर
सृजन स्वर उपजे अभिनव
झरते झरने सात समंदर 
गहरे जीवन के अनुभव 
अंधड़ ,पतझड़ ,बारिश की झड़,
मौसम होते असंभव 

ताल सरोवर भूमि  उर्वर 
गिरता उठता है शैशव 
धर्म कर्म की बात पुरानी 
नया पुराना होता भव 

जीवन से होता परिचय तो 
जीवन की लीला है नव 
जीवन ले ले कुदरत खेले 
विपदायें भीषण तांडव 

कटते  जंगल होते दंगल 
मानव बनता  है दानव 
विस्फोटक की खेप पुरानी 
क्षत विक्षत बिखरे है शव

3 टिप्‍पणियां:

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज