शनिवार, 19 मार्च 2016

क्रोध को आक्रोश मत बनने दो


आक्रोश एक
उबलता हुआ क्रोध है
जज्बात है
जो बाहर आना चाहते है
पर मजबूर है
कसमसा कर मुठ्ठियाँ भींचे हुए
क्रोध जब अभिव्यक्त नहीं हो पाया
तो वह आक्रोश बना
आक्रोश एक लावा है
जो बरसो सीने में दफ़न रहा
आक्रोश को
अभिव्यक्ति के अवसर की तलाश है
बहुत दिनों से वह अभिव्यक्त नहीं हो पाया है वह
आक्रोश असमानता
शोषण और अन्याय की उपज है
अभाव जिसका भाई
गरीबी और अशिक्षा जिसकी बहन है
आक्रोश कभी अकारण नहीं होता
सकारण होता है
अकारण तो आतंक होता है
क्रोध आक्रोश बन जाए
उससे पहले भावनाओ के माध्यम से
बहने दो
क्रोध को क्रोध ही रहने दो
हताशा और आक्रोश मत बनने दो 

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज