रविवार, 25 फ़रवरी 2018

दिलवर की मुस्कान

घर हो मंदिर प्यार रहे प्यारा सा परिवार
प्यार सदा अनमोल रहा भावो का उपहार
एक प्यारा सा भाव रहा प्यार सा एक बोध
मन के आँगन प्यार रहा प्यार भरा अनुरोध
मन व्याकुल है तृप्त नहीं मुझको तू पहचान
मन के मांगे नहीं मिली प्रियतम की मुस्कान
तन मन पागल प्यार रहा नहीं मिला है चैन
आँखे नभ् को ताक रही बीत गई कई रैन
मीठी कोमल प्यारी सी होती लब की शान
मोहे मुझको न्यारी सी दिलवर की मुस्कान
मधुरिम होता होठो पर शब्दों का श्रृंगार
अब न छेड़ो कड़वे बोल धधके मन अंगार
प्यारा सा संसार रहे मीठे हो हर बोल
तू अपने हर सपने को वचनो से ही तोल


अर्थ गहरे व्यर्थ वह निकालती

स्वार्थ से कितने भरे है आईने

है बदलते प्यार के यहाँ मायने

खो गई इंसानियत तो अब कही 

रिश्तो से है रस चुराया भाई ने

 

इंसानियत अब रक्त रंजीत हो गई है 

सद भावनाये अब कहा पर खो गई है

करवटे ले रोज हम रोते रहे 

वेदना शामिल  जीवन में हो गई है

 

जो मनुष्यता हमें है पालती

अर्थ गहरे व्यर्थ वह निकालती

शब्द से घायल हुआ जाता  है मन

वह ह्रदय पर घाव गहरे  डालती



 



रविवार, 11 फ़रवरी 2018

संस्कार

दुरभि रही संधिया
और पैतरे कई  लाये है
क्योकि
नैतिकता के मायने
नेता जी  ने पाये है

झूठी रही दोस्ती
रचते रहे प्रपंच
नेता जी ने साध लिया
लूट लिया है मंच

शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

टिक रहा विश्वास है

प्रकृति की वंदना का 
होता तरीका खास है
निसर्ग में है स्वर्ग रहता
 स्वर्ग अब वनवास है

उत्थित हिमाचय के हृदय में
सहजता का वास है
टहनियां और फूल पत्ते
 कुदरती उल्लास है

जो रहा निर्भीक सा मन 
जिंदगी वह खास है
हट रहा तम हर सवेरे
मन में जगा विश्वास है

फिर नया जीवन पाया
पायी फिर से आस है
हर्ष में  है मग्न सारे
जग मग नया आकाश है
 

स्वर्ग भी उतरा जमीं पर
स्वर्ग का अहसास है
लक्ष्य की एक भूख सी है
हर मन मचलती प्यास है

धर चला अंगुल रथ पर
हे पार्थ क्यो? उदास है
 इंदु है वह  सिंधु गहरा
बिंदु मे ठहरी आस है

हर कही पाया है उसको 
रचता रहा वह रास है 
पिय मिलन आतुरता है
टिक रहा   विश्वास है

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज